मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 22 जुलाई 2011

वो तेरा सच ये मेरा सच....

जो कहा तुमने अभी , सच होगा मै मानता हूँ ।
आपकी निरपेक्षता  को , बा-अदब पहचानता हूँ ।
बोले बिना कटु शब्दों को , सच से परिचय करवाते हैं ।
लाग लपेट में पड़े बिना , अपनी बात आप कह जाते है ।
अफसोस आपको बातों को , सदा सत्य मान नहीं सकता ।
मज़बूरी है कुछ मेरी भी , मै सत्य उधार नहीं ले सकता ।

कुछ मुझको भी मोहलत दो , स्वयं सत्य को मै पहचान सकूँ ।
इस सत्य असत्य के अंतर को , मै अंतर-मन से जान सकूँ ।
हाँ ये सत्य अभी पराया है मै, इससे रिश्ता नहीं जोड़ पाया हूँ ।
मुझे अनुचर बनना आया नहीं , बस अनुरागी ही बन पाया हूँ ।
सत्य वही है इस जग में , स्वयं जान सकें हो जिसको आप ।
बाकी सब है केवल कल्पना , क्यों नहीं जानते अब तक आप ।

 सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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