मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 23 जुलाई 2011

कैसे कहूँ...ओ हमसफ़र

ओ हमसफ़र , दो पल को ठहर...........

मत पूँछ अभी तू हाल मेरा , हम हाल बता ना पाएंगे ।
झूंठ बोलना आता नहीं , और सच को कह नहीं पाएंगे ।
कैसे कहें हम तुमसे अभी , जो हाल मेरे दिल का है ।
मै तुमसे दिल हूँ लगा बैठा , या दिल में तुझको बसा बैठा ।
कुछ पल का मुझको मौका दो , समझ सकूँ अपने दिल को ।
यह सचमुच खेल निराला है , या फिर से खेल पुराना है ।
यदि खेल निराला है साथी , तो रचनी पड़ेगी परिभाषाएं ।
यदि खेल पुराना है साथी , तो गढ़नी पड़ेगी मर्यादाएं ।

फिर जब तक मै जान ना लू, क्या हाल तुम्हारे दिल का है ?
मै कैसे कहूँ कुछ शब्दों में , क्या हाल हमारे दिल का है ।
अब तो तुम ही मदत करो , कुछ कदम चलो संग और मेरे ।
हो सकता है मै जान सकूँ , क्या हाल हमारे दिल का है ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. जी हाँ कुछ कदम तो अकेले चलना ही पड़ेगा यदि एक दूसरे का हाल जानना है.

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)