मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 21 जुलाई 2011

जाने कैसे कब किस पल.....

जाने कैसे कब किस पल हम , दिल अपना तुमको दे बैठे ।
प्रीत लगाकर तुमसे अपनी , चैन गवां हम अपना बैठे ।
शांत नदी की धाराओं सी , मेरे मन की लहरें बहती थी ।
गिराकर कंकर प्रेम का तेरा , मैंने उसमे भंवर बना दी ।
अब तो बस ये हाल हमारा , तुझ बिन दिल बेहाल हमारा ।
तेरी लगन लगी मुझे ऐसे , भटक गया दिल कहीं हमारा ।

चोरी-चोरी, चुपके-चुपके , जब तुझसे नैन मिलाता हूँ ।
तेरे रूप की मादकता में , अपना होश गँवाता हूँ ।
रातें तो बस रातें है तू , दिन का भी मेरे ख्वाब बनी ।
सोते जागते हर एक पल , तू अब मेरा अरमान बनी ।
तेरे प्रेम की माया ऐसी ,  अब बस तू ही है मुझको दिखती ।
इतना सब हो जाने पर भी , कैसे लिखूं अब तुझको चिठ्ठी ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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