मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 2 जुलाई 2011

प्रतिकार..

कुछ न कहूँ चुप ही रहूँ , शायद ये हो मेरा ठीक जबाब ।
मै कहता प्रतिकार इसे , तुम भले कहो कमजोरी जनाब ।
तुमने आरोप लगाया है ,  मैंने दिल को तेरे दुखाया है !
अपने अनर्गल शब्दों से , तेरे मन को दुःख पहुँचाया है ।
पीड़ा हुयी तुम्हे ज्यादा ही , सम्बन्ध ही थे इतने प्रगाढ़ ।
फिर भी समझ सके ना तुम , मेरे मन में उठते ज्वार ।

तुम तो सदा कहोगे ही  , हर शब्द तुम्हारे मर्यादित थे ।
चलो मान लेते है इसको , पर उनमे भी तीखेपन भी थे ।
तीरों जैसी नोक थी उनमे , दिल को भेद कर निकले थे ।
जब छलनी हो गया मन मेरा , प्रतिकार मेरे आने ही थे ।
सदा मुझे परखने की खातिर , अपनाते हो जिन पैमानों को ।
क्या कभी परख कर देखा, तुमने अपने भी व्यवहारों को ।

आरोप लगाना कठिन नही , है कठिन उसे मर्यादित रखना ।
सम्बन्ध बनाना कठिन नही, है कठिन उसे आगे ले चलाना ।
है एक बार की बात नही, कब तक मै साथ निभाऊंगा ।
आज नही तो कल मै भी , कभी पलट वार कर जाऊंगा ।
बिखर जायेंगे सम्बन्धो की , माला में गुंथे हुए मोती ।
इसीलिए चुप हूँ मै अभी , आँखे समेटे है कुछ मोती ।
 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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