मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

बंधन

प्यार, सम्बन्ध और रिश्ते ,
जन्म , मरण और मोक्ष ।
मान , सम्मान और अपमान ,
धन,सम्पत्ति,वैभव और पराभव  ।
चाहत , नफ़रत और उपेक्षा , 
अनुग्रह,आभार और अनादर ।
न जाने कितने मकड़जाल , 
फैले हैं हमारे चारो तरफ ।

कभी वो दिखते हमें प्रत्यक्ष  , कभी वो रहते है अदृश्य ।
कभी हम पाते उन्हें समझ ,कभी वो होते अबूझ पहेली ।

यूँ  जब जब हम जीते है , जीवन अलग-अलग कई खंडो में ।
हम और उलझने लगते है , इन दृश्य-अदृश्य मकड़जाल में ।

फिर हम समझ नहीं पाते , है नहीं अलग खुशिया और दुःख ।
किसी जंजीर की कड़ियों सी , ये बंधी हुयी हैं असीम अनंत ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. विवेक जी सच लिखा है दुःख व् सुख एक ही सिक्के के दो पहलू है .बहुत sundar भावाभिव्यक्ति .आभार .

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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