मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 1 जून 2011

आधी रात..

आधी रात बुलाया तुमने , 
नींद से मुझे जगाया तुमने ।
मुझको मेरे स्वप्नों से , 
जबरन अलग कराया तुमने ।
जाम बनाया तुमने और ,
फिर अपने पास बिठाया क्यों ।
चाँद छिपा है बादल में ,
मुझको ये दिखलाया क्यों ।

कुछ बातें थी जो अंजानी ,  
वो राज मुझे बताया क्यों ।
आधी रात मुझे सजाकर , 
दूल्हे सा बैठाया क्यों ।

अब तो असली वजह बता दो ,
अहसान करो मुझ पर थोड़ा ।
आज जिबह का दिन तो नहीं ,
मुझको लगता है डर थोड़ा ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. डर कर जिए तो क्या जिए ... सुन्दर रचना .

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  2. एक और सुन्दर कविता आपकी कलम से !

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  3. फुर्सत मिले तो 'आदत.. मुस्कुराने की' पर आकर नयी पोस्ट हम भारतीय है भारतीय कहलायेगे ....
    ज़रूर पढ़े .........धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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