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शुक्रवार, 27 मई 2011

कौन हो ?

देख कर तुमको सदा  , 
मैं सोंचता हूँ कौन हो ?
अपनो से लगते मुझे ,
फिर भी नहीं तुम पास हो ।

क्यों देखकर तुम्हे सामने ,
मै भूल जाता स्वयं को भी ।
फिर नजर के सामने कुछ ,
और नहीं टिकता कभी ।

पर यूँ ही कब तक चलेंगे ,
अंजान से हम दोनों ही ।
है अभी मौसम सुहाना ,
चलो कर ले परिचय ही । 

जाने कब किस मोड़ पर ,
राह अलग हो जाये फिर ।
पर जहाँ तक साथ है क्यों ,
अंजान से चलते हैं फिर ?


 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

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  2. खूबसूरत अभिव्यक्ति ..परिचय हुआ ?

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  3. बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..अंतिम पंक्तियाँ तो लाज़वाब..बहुत सुन्दर..

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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