मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 10 मई 2011

तब तक..

रेत के इन टीलों को , हमें स्थायी बनाये रखना है ।
मिटा ना दे हवा इन्हें , ये व्यवस्था बनाये रखना है ।
रास्ते नित नूतन बनाकर , प्रगति बनाये रखना है ।
बचाकर पहचान अपनी , अस्तित्व बनाये रखना है ।
अपने कदमों के निशां को , सुरक्षित बनाये रखना है ।
मंजिलो पर विजय पताका , लहराती बनाये रखना है ।

हालाँकि आसान नहीं , रेत पर यूँ खेलना ।
भुलाकर अपने दर्द को , औरों को सहेजना ।
बंजर मरुभूमि पर , नयी कोपलों को उगाना ।
आँसुवो को जमा कर , नखलिस्तान नया बनाना ।
लेकिन जब तक काल-चक्र , परिवर्तन नहीं लाता ।
तब तक ये मरुभूमि ही , अपनी है भाग्य विधाता ।

 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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