मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 2 मई 2011

तलब

चाहतें हद से जब गुजरने लगी , 
न चाहते हुए भी नजर तुझपे पड़ने लगी ।
प्यासा था मै बहुत पहले से साकी,
अब दिल में भी तड़फ उठने लगी ।

यूँ तो खायी थी कसम न आयेंगे इधर , 
पर कदम मेरे खुद आ गए तेरे पास ।
अब आ ही गए हैं तो पिला दो मुझे , 
फिर करते रहना तुम बाकी हिसाब ।

पहले जब आकर पिया था यहाँ ,
मैंने माँगी थी तुमसे केवल शराब ।
गया जब घर और उतरा उतरा नशा ,
मैंने जाना कि उसमे मिली थी शबाब ।

तो आ ही गए हम अब फिर से यहाँ ,
आज नज़रों से ही तुम पिला दो शराब ।
बस आँखों ही आँखों से पिलाना मुझे ,
जाम छलके नहीं ना ही टूटे गिलास ।

कहो तो खुदा की मेहर गिरवी रखूँ ,
भरोसा रखो मुझ पर साकी तुम आज ।
आँखों ही आँखों से मै पीता रहूँगा ,
छुऊँगा नहीं जाम हाथों से आज ।

तमन्ना है मेरी यही बस ओ साकी ,
जो पहले पिया था फिर से पिला दो ।
कहो तो दुबारा नहीं आऊँगा मै ,
बस अबकी छका कर मुझे तुम पिला दो ।।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ..



    चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 03- 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  2. वाह वाह वाह्……………बहुत ही सुन्दर और मनभावन रचना।

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  3. अरे वाह !

    रचना और चित्र ...दोनों मिलकर प्रेमरस की वर्षा कर रहे हैं

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर भावमयी रचना..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति| धन्यवाद|

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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