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बुधवार, 13 अप्रैल 2011

त्याग

काम क्रोध मद लोभ का , तज सको अगर व्यापार ।
मिल जायेगा तुम्हे जगत में , सुखमय जीवन का सार ।
काम नहीं है पाप जगत में , अगर प्रेम हो उसमे शामिल ।
सदा समर्पित करो स्वयं को , अंतर्मन के प्रेम की खातिर ।
बिना प्रेम के काम-क्रिया क्या , समस्त कर्म होते व्यभिचार ।
जिस क्षण  प्रेम समर्पित होगा , मिल जायेगा मुक्ति का द्वार ।

ये क्रोध कहाँ स्वयं स्वामी है , मद-लोभ पर रहता है वो निर्भर ।
जब जब लगती ठेस अहम् को , मन को आता क्रोध है उस क्षण ।
लोभ भी जब जब संवर न पाता, मन को क्रोधित है कर जाता ।
सतर्क हो सको अगर जरा सा , क्रोध को समझो मरा हुआ सा ।
यह 'मद' है रिश्ते में पौत्र लोभ का , जग में उसके है दो पालक ।
समस्त दुखो का मूल है लालच , धर्म-अधर्म दो उसके बालक ।

लोभ अगर तुम छोड़ सकोगे , सुख-दुःख को तुम जोड़ सकोगे ।
जिस क्षण ख़त्म हुआ बँटवारा , स्वयं को प्रभु से जोड़ सकोगे ।  
बिना लोभ के बन जाते है, समस्त अ-कर्म योग के जैसे ।
भले रहो सदा ग्रहस्त जगत में , बन जाओगे योगी जैसे ।
फिर जो भी भोगोगे इस जग में , भोग नहीं कहलायेगा ।
जो बिना भोग के आएगा , वही सच्चा सुख कहलायेगा ।

। © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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