मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

आओ चलें...

आओ चलें हम दूर कहीं , सागर के किसी किनारे पर ।
लहरों की छुवन महसूस करें , अपनी फैली बाँहों पर ।
मिलने दें अपने मन की , लहरों को सागर से हम ।
भर ले अपने दिल को , सागर के ज्वारों से हम ।
शायद सागर का खारा जल , फिर आँखों में आंसू भर दे ।
बलखाती लहरे सागर की , पत्थर दिल को पोरस कर दें ।

फिर शायद महसूस कर सकें , अपने अकेलेपन को हम ।
सीख सके उससे शायद , कुछ थोड़ा संयम भी हम ।
शायद उसका विस्तार देख , दिल को बड़ा बना पायें ।
देख कर उसके तूफानों को , मन में जोश जगा पायें ।
अपनी खाली थाती में , कोई मोती उपजा पायें ।
भुलाकर अपने स्वार्थ सभी , निस्वार्थ भी थोड़ा हो पायें ।



© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (7/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
    http://charchamanch.uchcharan.com

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी रचना , बहुत अच्छे विचार । जब तक हम सागर तक नहीं जाते अहसास ही नहीं होता है कि हम कुछ नहीं! बहुत कुछ सीखना है सागर से ! धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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