मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

एक तथ्य..

किसी ने क्या खूब सच कहा है ...
"आप जिस कसौटी पर परखते हैं हमको ,
गर आपको परखें तो अंजाम क्या होगा ?"

हम इस संसार में , मानवीय रिश्तो के मायाजाल में , और शुद्ध व्यवसायिक उतार चढाव में जिन कसौटियों पर दूसरों को परखते हैं और उनके बारे में जितनी सरलता से कोई भी निष्कर्ष निकाल लेते हैं....

उतनी ही सहजता से हमने , आपने क्या कभी यह सोचने की जरुरत महसूस की कि अगर हमें भी कोई दूसरा अथवा स्वयं हमी अपने को उन्ही कसौटियों पर परखे तो वास्तव में क्या निष्कर्ष होगा ?

शायद वही जो प्राय: हम दूसरों के लिए निकलते हैं ,

और अगर यह मानने को हमारा मन तैयार नही हो रहा है तो इसका अर्थ शायद यह है कि हमारे अंतर्मन का अभिमान झुंकने  को तैयार नही हो रहा है ।

तो केवल यह मत कहें कि अगर उस जगह पर मै होता तो ऐसा नही करता ।

यह कहने के पहले आप स्वयं को उन्ही मान्यताओं , आकांक्षाओं , सम्बन्धों और परिस्थितियों के मध्य ईमानदारी से स्थापित करें और फिर तथस्त / निर्विकार भाव से किसी दृष्टा की  तरह से देखें और फिर कुछ कहें ।

आपका अपना

                       विवेक.....

 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है !

    भाग कर शादी करनी हो तो सबसे अच्छा महूरत फरबरी माह मे

    जवाब देंहटाएं
  2. विचारनीय पोस्ट। शुभकामनायें।

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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