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रविवार, 30 जनवरी 2011

अंत..।

राष्ट्रपिता की पुण्य तिथि पर बापू को बारम्बार नमन...

हाँ आज हुआ था अंत , एक अध्याय हुवा था बंद ।
जब बीतने वाला था एक युग , जीतने वाले हारे युद्ध ।
जिसे हम धारा कहते थे , वही हो गया आज अवरुद्ध ।
दिशा होती थी जिससे तय , वही गिर पड़ा भूमि पर रुद्ध ।
कहा जिसको परिवर्तन था , वही परिवर्तित हो गया खुद ।
तेज जो देता था सबको , वही निस्तेज हुआ था खुद ।
जिसे हम आँधी कहते थे, उसी का वेग हो गया कम ।
जिसे हम गाँधी कहते थे , उसी के प्राण हर लिए हम ।
जुडी थी जिससे सब आशा , उसी को हुयी आज निराशा ।
कहा था उसको अपराजेय , अटल वो रह पाया ना ध्येय ।
रहा ना अब वो जग में आज , जिसे रचना था इतिहास ।
पढ़ा कर हमें शांति का पाठ , बन गया स्वयं ही वो इतिहास ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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