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बुधवार, 8 दिसंबर 2010

माटी का मोल ।

साईं ने जब कह दिया , जग है माटी मोल ।
माटी से सब तौल कर , चुकता कर दो मोल ।
माटी से जब तक नही , मिलता नश्वर शरीर ।
माटी के हित प्राण की , बाजी लगता बीर ।
माटी ने पैदा किया , माटी ने है पाला हमें ।
कर्ज चुका कर माटी का , माटी में मिल जाना हमें ।

माटी का रंग बदलता है , स्वभाव बदलता कभी नही ।
ममतामयी माता की तरह , आश्रय पाते उससे सभी ।
माटी अपना धर्म निभाकर , निर्लप्त रहती जाती है ।
जीवन का यह मूल मंत्र , हमको सदा सिखाती है ।
यहाँ माटी में माटी जैसा , बनकर साईं रहता है ।
इस जग को हर पल , माटी सा ही समझता है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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