स्वप्नों का संसार अलग ,
अलग धरा का ठोस धरातल ।
एक में मुक्त विचरता मानव ,
एक में बंध कर रहता मानव ।
ठोस धरा में बोने पर ,
बीज हकीकत का उगता ।
स्वप्नलोक में आसमान से ,
पौधा धरती पर उतरता ।
कच्चे धागों के रिश्ते ,
स्वप्नलोक में होते नही ।
ठोस धरातल पर ज्यादा ,
अनगढ़ रिश्ते चलते नही ।
ये तुम हो जिसको बढकर ,
आज फैसला करना है ।
स्वप्नलोक और ठोस धरा में ,
किसी एक को चुनना है ।
मानव की मर्यादा का ,
ध्यान भी तुमको रखना है ।
स्वप्नलोक की सभी कल्पना ,
ठोस धरा पर रचना है ।
स्वप्न-दृष्टा से आगे बढ़ ,
युग-दृष्टा तुमको बनना है ।
अपने निज बल से तुमको ,
स्वप्न हकीकत करना है ।।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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