मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

वक्त..

कुछ वक्त की है तस्वीर यही ,
कुछ मेरी भी तक़दीर यही ।
कुछ वक्त की है मज़बूरी भी ,
कुछ मेरे लिए जरुरी भी ।

कुछ वक्त की है तकरीर यही
कुछ मेरी भी तक़दीर यही ।
कुछ वक्त की खानापूरी है ,
कुछ मुझसे उसकी दूरी है ।

कुछ वक्त यहाँ नासाज सा है ,
कुछ राग अलग मेरे साज का है ।
कुछ वक्त मेरा नाराज भी है ,
कुछ मैंने छुपाया राज भी है ।

कुछ वक्त मुझे अजमाता है ,
शायद वह मुझे तपाता है ।
जो भी हो यह वक्त मेरा है,
जो नही सनातन रह पाया है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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