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बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

एक पत्र.. प्यारे भाई के नाम

प्यारे भाई सिद्धार्थ
२००७ में टाटा क्रुसिबल में शुरुवात करते हुए प्रथम बार में ही इंदौर के रीजनल विजेता बनने परन्तु उचित टीम सहयोग की अनुपलब्धता के कारण नेशनल राउंड में चूक जाने, पुन: अकेले अपने दम पर २००८ एवं २००९ में संघर्ष करते हुए लखनऊ रीजनल राउंड के उपविजेता का स्थान पाकर भारी मन से घर लौटने और दो बार से प्रथम स्थान से महरूम कर रही जन्मभूमि लखनऊ में अंतत: २०१० के रीजनल विजेता बनाने का गौरव पाकर आगामी नेशनल राउंड हेतु स्थान सुनिश्चित करने के बाद अब बस मुझे इंतिजार है आपके नेशनल विजेता के गौरव को प्राप्त करने का... और भाई आप में उक्त गौरव हेतु योग्यता, क्षमता प्रारंभ से ही है मगर आप पूर्व में उसे स्वयं ही बाधित करते रहे है....
तो इस बार बस ध्यान रखना कि बिना किसी दबाव एवं ढेर सारी अपेक्षाओ के बिना नेशनल राउंड का आनंद लेने हेतु जाना और अपनी श्रेष्टतम क्षमता को नैसर्गिक रूप से उभरने देना क्योंकि तुम्हारे पास अभी खोने के लिए कुछ नहीं है बस सिर्फ पाने के लिए ही सब कुछ है....... इन दो लाइनों को याद रखना जो मुझे सर्वाधिक प्रिय हैं..
"मालिक तेरी रजा रहे और तू ही तू रहे,
बाकी ना मै रहूँ ना मेरी जुस्तजू रहे . "
हाँ इस बार तुम्हारे साथ पूर्व की तुलना में बेहतर साथी के रूप में अंकित जोशी का साथ है इसलिये उसे भी उसकी अपनी श्रेष्टतम क्षमता को साबित करने और अपने दबाव को कम करने में मदत करने का पूरा अवसर देना......
समय को तुम्हारा इंतिजार है और मुझे उस समय का
शुभकामनाओ के साथ
विवेक मिश्र .. अनंत

 
४. सिद्धार्थ मिश्र एवं श्री अंकित जोशी (बाये से ३,४ स्थान पर) :- टाटा क्रुसिबल 2010 लखनऊ रीजनल राउण्ड विजेता
  
३. सिद्धार्थ मिश्र (सबसे बाये) एवं सहयोगी श्री लोकेश कुमार टाटा क्रुसिबल  २००९ लखनऊ रीजनल राउण्ड उपविजेता

२. सिद्धार्थ मिश्र एवं सहयोगी श्री नीरज :- टाटा क्रुसिबल २००८ लखनऊ रीजनल राउण्ड उप-विजेता  
१. सिद्धार्थ मिश्र (बाये से दुसरे )  एवं सहयोगी श्री अजीत शाही :- टाटा क्रूसिबल २००७ इंदौर रीजनल राउण्ड विजेता

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