मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 5 अक्तूबर 2010

किसके लिए ? मेरी 100वी कविता.......

ऐ पथिक तू राह में , है खड़ा किसके लिए ?

कौन है जो आ रहा , तू खड़ा जिसके लिए ?

क्या नहीं तू जानता , हैं मतलबी सब यहाँ ।
अपना काम बनते ही , भूल जाते सब यहाँ ।

साथ है बस उन क्षणो तक , हों पुष्प राहों में जहाँ तक ।

कंटकों को बीन पायें , नहीं साथी यहाँ कोई अभी तक ।।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. सामयिक रचना लिखी है। यही है आज की सच्चाई। बढ़िया।

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  2. चंद पंक्तियों में बहुत वजनदार बात लिख दी भाई!

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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