" आग को पानी का भय , सदा रहना चाहिए ।
यूँ धरा पर शक्ति संतुलन , सदा रहना चाहिए ।"
तो
बने ना कोई एकक्षत्र , शासक कभी इस भूमि का ।
शक्तियां करती निरंकुश , ध्वंस होता राज्य का ।
आज है जो नम्र दिखता , कल निरंकुश हो सकता है ।
इस धरा पर जल बिना , जग आग में जल सकता है ।
तो अगर सुख चाहिए , शक्ति सदा बिखराइये ।
यूँ जगत में सभी को , संतुष्ट करते जाइये ।
आग को पानी का भय , बना रहना चाहिए ।
शांति का ये मूलमंत्र , सदा याद रहना चाहिए ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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