मेरी डायरी के पन्ने....

गुरुवार, 30 सितंबर 2010

स्वागत है,

स्वागत है! पथिक तुम्हारा , तुम पहुंचे तोरण द्वार तक।
तेरा स्वागत करने आये , सब नगर निवासी द्वार तक।
तोरण द्वार है परिचायक , अब मंजिल बहुत समीप है।
जो कदम उठे थे राह पर , वो लक्ष्य के अब नजदीक है।

पर सावधान खुशकिस्मत राही , अभी चंद क़दमों की दूरी है।
संयत होकर कदम बढ़ावो , तुम्हे यात्रा करनी पूरी है।
दो पल चाहे सुस्ता लेना , मन को भी तुम बहला लेना।
संचित करके शक्ति नवीन , फिर पुन: राह पर चल देना।


ये उपलब्धि नहीं तेरी मंजिल , अभी तुमको आगे चलना है।
फहराकर विजय पताका , गौरवान्वित लक्ष्य को करना है।
फिर अपने विजय यात्रा का , श्रेय जनमानस को दे देना।
करके तुम अभिमान कोई , ना इतिहास कलंकित कर देना।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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