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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

रघुपति राघव राजा राम

रघुपति राघव राजा राम , कलियुग व्यापा है श्री राम ।
राजनीति का बना अखाडा , जन्मभूमि और तेरा नाम ।

जनता पिसती दो पाटों में , दोनों तरफ है तेरा नाम ।
एक बिरोधी दल के नेता , एक बोलते जय श्री राम ।

एक जुए में बाजी लगाता , एक नग्न करता है राम ।
परदे के पीछे जाकर सब , भूल हैं जाते तेरा नाम ।

किसे कहें अब पांडव और , किसे कहें कौरव हम राम ।
अंतर नहीं रहा दोनों में , दोनों बेंच रहे हैं तेरा नाम ।

अब तो तुम ही न्याय करो , अवधपुरी के राजा राम ।
बिस्मिल्लाह करना है सबको , या कहना है जय श्री राम ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. बिल्कुल सही कहा भाई आपने! बस यही आज हो रहा है और इन मूर्खों की लाचारी पे देश रो रहा है।

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  2. "रघुपति राघव राजा राम
    अब कहना है जय श्री राम"

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  3. बधाई हो -
    सत्य को जितना भी दबाया जाये - पर वो सामने आकार ही रहता है.

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  4. सही चिन्तन !

    उम्दा बात.........30/9/10 8:11

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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