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गुरुवार, 30 सितंबर 2010

आदर्श

जीवन के आदर्शों की , है लिखी पोथियाँ मानव ने ।
अफ़सोस मगर उसमे कितना , स्वयं अपनाया मानव ने ।
जितना सहज है औरों को , पाठ पढ़ाना आदर्शों का ।
कठिन है उतना ही उस पर , स्वयं चलना मानव का ।
है औरों के लिए अलग , और अपने लिए अलग पैमाना ।
यही संस्कृति कलयुग की, इस पर ही चलता आज जमाना । २१/०४/2005

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"अनंत" कलयुग में है जन्मे आप, फिर मानव होने का अभिशाप ।
मैंने देखा पाठ पढ़ाते , औरों को सुन्दर हैं आप ।
पर चलिए सत्य जानते हैं , ये है मीठा सुखद एहसास ।
लेकिन क्या कभी सोंचा है , क्यों भटक राह से जाते आप । २५/०३/2007
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© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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