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मंगलवार, 28 सितंबर 2010

सावधान ! हे पथिक

सावधान ! हे पथिक , तुम लक्ष्य से भटक रहे ।
छोड़ कर तुम राह को , पगडंडियों पर चल रहे ।
दूर है मंजिल तेरी , अनगिनत अवरोध हैं ।
राह में रुकना नहीं , क्या इसका तुमको बोध है ?
तूने किया था प्रण ये , लक्ष्य को पायेगा तू ।
यूँ भटक कर राह में , कैसे पहुँच पायेगा तू ?

सावधान हो पथिक , लक्ष्य अभी अविजित है । 
कर्म से ही संसार का , भाग्य भी सृजित  है ।
याद कर तू प्रण अपना , जो पूरा होना है अभी ।
देर है किस बात कि , तुझको सम्भलना  है अभी ।
गलतियाँ जो हो गयीं , प्राश्चित उसका भी है ।
लक्ष्य से भटका है तू , लक्ष्य जीवित अब भी है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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