मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 22 सितंबर 2010

इस १००वे पोस्ट पर आप सभी से पुन: अनुरोध है..

प्रिय स्नेहीजन ,
       आप सभी के द्वारा प्रदान मनोबल से मै ९९ के फेर से निकल कर अपनी १००वी  पोस्ट आपके समक्ष ब्लागजगत पर प्रस्तुत करने जा रहा हूँ , पूर्व की ९९ पोस्टों में कुछ ब्लाग पर सीधे लिखी गयी नयी रचनाएँ थी तो शेष मेरी डायरी  के पन्नो से सीधे निकलकर आपके सामने आयी थीं
इनमे से कुछ आपको पसंद आयी होंगी, कुछ नहीं पसंद आयी होंगी, और कुछ तो हवा में ही बिखरी-बिखरी नजर आयीं होगी और इसका मुझे भली भांति एहसास है क्योंकि पहले लिखी गयी मेरी कई रचनाये तो आज स्वयं मुझे भी ज्यादा नहीं भाती है मगर क्या करू किस समय क्या लिखता हूँ वो इस बात पर निर्भर होता है की उस समय मेरी मन: स्थित या मनोदशा कैसी है और सामान्यतया किसी दायरे में बँध कर रहना या सोंचना मुझे भाता नहीं तो अपना मान बनाये रखने के लिए अपने मन  से अन्याय नहीं कर सकता , इसी लिए जो भी था, जैसा भी था वो वैसा ही आपके सामने ले आया, और आगे भी यही करता रहूँगा ।
इस अवधि में साथी ब्लागरों एवं  प्रिय स्नेहीजनो ने सदैव मेरा मनोबल बढाया मगर मुझे किसी ने कभी मेरी कमियों पर मेरा ध्यान नहीं दिलाया। चलिए जीवन चलते रहने का ही नाम है ।

आज अपने इस १००वे पोस्ट पर आप सभी से पुन: अनुरोध है कि :-

शब्दों पर ना जाये मेरे, बस भावों पर ही ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे, उसे भूल समझकर टाल दें ।
खोजें नहीं मुझे शब्दों में, मै शब्दों में नहीं रहता हूँ ।
जो कुछ भी मै लिखता हूँ, उसे अपनी जबानी कहता हूँ ।

ये प्रेम-विरह की साँसे हो, या छल और कपट की बातें हो ।
सब राग-रंग और भेष तेरे, बस शब्द लिखे मेरे अपने है ।
तुम चाहो समझो इसे हकीकत, या समझो तुम इसे फ़साना ।
मुझको तो जो लिखना था, मै लिखकर यारो हुआ बेगाना ।

आप चाहे जब परख लें, अपनी कसौटी पर मुझे ।
मै सदा मै ही रहूँगा, आप चाहे जो रहें ।
मुझको तो लगते है सुहाने, इंद्र धनुष के रंग सब ।
आप कोई एक रंग, मुझ पर चढ़ा ना दीजिये ।

मै कहाँ कहता की मुझमें, दोष कोई है नहीं ।
आप दया करके मुझे, देवत्व ना दे दीजिये ।
मै नहीं नायक कोई, ना मेरा है गुट कोई ।
पर भेड़ो सा चलना मुझे, आज तक आया नहीं ।

यूँ क्रांति का झंडा कोई, मै नहीं लहराता हूँ ।
पर सर झुककर के कभी, चुपचाप नहीं चल पाता हूँ ।
आप चाहे जो लिखे, मनुष्य होने के नियम ।
मै मनुष्यता छोड़ कर, नियमो से बंध पाता नहीं ।

आप भले कह दें इसे, है बगावत ये मेरी ।
मै इसे कहता सदा, ये स्वतंत्रता है मेरी ।
फिर आप चाहे जिस तरह, परख मुझको लीजिये ।
मै सदा मै ही रहूँगा, मुझे नाम कुछ भी दीजिये ।

हो सके तो आप मेरी, बात समझ लीजिये ।
यदि दो पल है बहुत, एक पल तो दीजिये ।
तारीफ करें ना केवल मेरी , कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे, संज्ञान में मेरी डाल दें ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छी पंक्तिया ........

    सबसे बढ़िया बात ...

    यहाँ भी आये एवं कुछ कहे :-
    समझे गायत्री मन्त्र का सही अर्थ

    जवाब देंहटाएं
  2. शानदार शतक के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ
    आपकी बात (मनोभाव) और फिर कविता बहुत अच्छी लगी ...
    चलते रहिये ..जीवन इसी का नाम है ....

    जवाब देंहटाएं
  3. .

    बहुत निर्भयता से अपनी बात कह देते हैं आप। आप की बेबाकी बहुत अच्छी लगी। आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आई , अच्छा लगा। आगे भी आती रहूंगी। सौवीं पोस्ट की बधाई।

    .

    जवाब देंहटाएं
  4. शतक की बहुत-बहुत बधाई!
    आपकी कलम से आगे भी ऐसे ही मोती झरते रहें। आपकी रचनाओं को देखें तो कोई कम अच्छी तभी पता चलती है जब दूसरी अधिक अच्छी होती है।
    तो साब इस अच्छी और कम अच्छी के बीच हम रहते हैं तब तक फिर कुछ अच्छी रचना मिल जाती है। कुल मिलाकर सब अच्छा ही अच्छा है। लगे रहो मुन्ना भाई!

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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