मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 22 सितंबर 2010

पीने दो मुझको भी

पुरनम ना हुयी हो आँखे जब , कैसे नजर हटा लूँ मै ।
जब तक होश है बाकी कैसे , अपनी पीठ दिखा दूँ मै ।
जब साईं मेरा बाँट रहा , क्यों नाप तौल कर आज पिऊ ।
अब आई जशन की बारी है , क्यों खड़ा कहीं एकांत रहूँ ।
देखो आज बहारें भी , छक कर पीने आयीं हैं ।
नील-गगन और धरती भी , मदहोशी को पायीं है ।

पीने दो मुझको भी छक कर , जन्मो का मै प्यासा खड़ा ।
इस पर है मदिरा साईं की , उस पर है रुखा जगत खड़ा ।
जब तक शेष है मै मुझमें , मदहोशी कहाँ आ पायेगी ।
इस छोटे से दिल में कैसे , साकी की जगह हो पायेगी ।
मत रोंको मुझको आज अभी , मिट जाने दो मयखाने में ।
जो आज चूक मै गया कहीं , कई जन्म लगेंगे जाने में ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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