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रविवार, 5 सितंबर 2010

कैसे कहूँ ..?

क्या कहें हम आपसे ,
कैसे कहें हम सच अभी ।
साँस है उखड़ी अभी ,
और राज की है बात भी ।

तुमने दिया है वास्ता ,
गीता का हमको अभी ।
कैसे कहें हम पूरा सच ,
जब वासना मन में भरी ।

वासना एक शब्द है जो ,
है समेटे भाव अगणित ।
जो इसे जाना नहीं ,
वो ही यहाँ पर है व्यथित ।

मेरा क्या मै तो यहाँ ,
पहले से ही हूँ अतिथि ।
जितनी तरह की वासनाएं ,
सब से हूँ मै पतित ।

इस पल भी मै कुछ ऐसे ही ,
हाल से गुजरा अभी ।
मन में उभरे भावों को ,
कुछ पल जिया मैंने अभी ।

इससे ज्यादा क्या कहूँ ,
कुछ राज की है बात भी ।
साँस थम जाये जरा ,
फिर कहूँ आगे कुछ और भी ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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