मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 4 सितंबर 2010

जिंदगी

यूँ दूर से देखो नहीं ,
तुम पास आओ कुछ जरा ।
जिंदगी के रूप का ,
आलिंगन कर लो तुम जरा ।

कुछ नहीं यहाँ पाप है ,
कुछ भी नहीं है पुण्य यहाँ ।
भूल कर सब पाप पुण्य ,
गोता लगाओ तुम यहाँ ।

छोड़ दो अब तुम तैरना ,
बहने दो धारा में स्वयं ।
किस डगर ले जाएँ जीवन ,
चुनने दो जीवन को स्वयं ।

जितने ही अवरोधों को ,
तुम बनोगे यहाँ ।
जिंदगी की मुश्किलों को ,
तुम बढाओगे यहाँ ।

 © सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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