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बुधवार, 18 अगस्त 2010

एक स्वप्न

सोते सोते रात अचानक , जाग गया मै सपने में । 
देखा तो चहुँ- ओर घिरा था , कुहरा बहुत भयानक ।

दूर कहीं पर भौंक रहे थे , कुछ उल्लू पेड़ पर शायद ?
गरज रही थी कहीं निकट ही ,एक बिल्ली शेर पे शायद ?
इतने में चूहा आ धमका , बड़े जोर से फिर वो बमका ।
मच गई भगदड़ चारो और , भागे सब जन मांद  की और ।

मै भी चौंका बड़े जोर से , जंगल में मै पहुंचा कैसे ?
मै तो अपने घर में था , फिर नींद चल कर आया कैसे ?
चारो तरफ है फैला जंगल , होगा मचा शहर में दंगल ।
ढूंड रहे होंगे सब मुझको , कौन बचाएगा अब उनको ।


लभी भूँख मुझे तभी जोर की , खा गया कच्चा मै कई हाथी ।
हाहाकार मचा जंगल में , रोने लगे बचे हुए साथी ।
भूँख मिटी जब मेरी थोड़ी , नींद आ गयी मुझे जोर की ।
सो गया मै फिर वही अकेला , जंगल में था मेरा बसेरा ।

तभी हिलाया मुझे किसी ने , जाग गया मै अपनी नींद से ।
टूट गया फिर स्वप्न अधूरा , घर में था मै अपने पूरा ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. बहुत ही बढ़िया सपना देखा भाई! बच्चों के लिए सुंदर सी कविता बन गया।

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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