क्या पीठ में थे घाव कम , तुम गले मिलने चले ?
इससे अच्छा था कि तुम, दुश्मनों को खोजते ।
कम से कम धोखे से वो , दोस्ती करते नहीं ।
तुम ना यू हैरान हो , क्या ये उल्टा राग है ।
दुश्मनी कैसी भी हो , कुछ दोस्त रहते है वहां ।
दुश्मनी की ओट में , अक्सर वफ़ा करते यहाँ ।
दोस्ती बिन स्वार्थ के , कौन करता आज है ।
कौन कहता है कि दुश्मन , दोस्त से अच्छा नहीं ।
कम से कम दिल पे हमारे , घाव तो करता नहीं ।
क्या कमी है दोस्तों की , दुश्मनों के बीच भी ।
बस एक नजर देखो जरा , दुश्मनों के बीच भी ।
हित सधे अपना अगर , दोस्ती दुश्मन करे ।
जग के दिखावे के लिए , दुश्मनी करता रहे ।
स्वार्थ हो अपना अगर, दोस्त है दुश्मन बने ।
बस दिखावे के लिए , वो दोस्ती करता रहे ।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG
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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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