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बुधवार, 18 अगस्त 2010

क्या कमी थी दुश्मनों की, फिर दोस्ती करने चले ?

क्या कमी थी दुश्मनों की , फिर दोस्ती करने चले ?
क्या पीठ में थे घाव कम ,  तुम   गले   मिलने  चले ?

इससे अच्छा था कि तुम, दुश्मनों को खोजते ।
कम से कम धोखे से वो , दोस्ती करते नहीं ।

दुश्मनी कैसी भी हो , कुछ दोस्त रहते है वहां ।
दुश्मनी की ओट में  , अक्सर वफ़ा करते यहाँ  ।
तुम ना यू हैरान हो , क्या ये उल्टा राग है ।
दोस्ती बिन स्वार्थ के ,  कौन   करता आज है ।

कौन कहता है कि दुश्मन , दोस्त से अच्छा नहीं  ।
कम से कम दिल पे हमारे ,  घाव तो करता नहीं ।

क्या कमी है दोस्तों की ,  दुश्मनों के बीच भी  ।
बस एक नजर देखो जरा  , दुश्मनों के बीच भी ।


 हित सधे अपना अगर , दोस्ती दुश्मन करे ।
जग के दिखावे के लिए , दुश्मनी करता रहे ।
स्वार्थ हो अपना अगर, दोस्त है दुश्मन बने ।
बस दिखावे के लिए , वो दोस्ती करता रहे ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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