मेरी डायरी के पन्ने....

बुधवार, 18 अगस्त 2010

अथ नेता उवाच

आओ पापी जानो तुम्हे ,मै सारे पाप सिखाता हूँ ।
भारी भरकम जेबों को , मै हल्का करना बतलाता हूँ ।

उस से आगे बढ़ कर मै , चोरी की कला बताता हूँ ।
लूट-पाट करना जमकर , मै पल में ही सिखलाता हूँ ।
गला काट कर शीश सहित , गायब होना पढाता हूँ ।
ब्याभिचार की सभी कलाएं , सचित्र तुम्हे सिखाता हूँ ।

कैसे लेते रिश्वत है ? , कैसे उसे पचाते है ??
कैसे औरों का मॉल हड़प कर , अपना उसे बताते है ।

लोकतंत्र के नाम पर कैसे , हम मिलकर लूट मचाते है ।
हमसे ज्यादा कौन अनुभवी , होगा पाप की दुनिया में ।
हमसे ज्यादा कौन पतित , होगा पूरी दुनियां में ।
नेतागीरी करते हम , देखो सारी दुनिया में ।
इसीलिए तो जनता ने , नेता हमें बनाया है।
देख हमारे अनुभव को , हमें सत्ता में पहुँचाया है ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

  1. सराहनीय अभिव्‍यक्ति

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  2. जबरदस्त व्यंग.... ऐसे लगा कि अबी नेता जाऊं और सारी खुबियां दुनिया को दिखाऊं...

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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