मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

दु:स्वप्न

देखो ! वो जो आते है,
सब मुझसे नजर चुराते है।
मै उन्हें हकीकत बतलाता हूँ,
उनको,उनका रूप दिखाता हूँ।
फिर भी जाने क्यों ? वो मुझसे ,
रहते है नाराज सदा।
मुझे समझकर  दु:स्वप्न के जैसा,
उठ जाते है, दिवास्वप्न से।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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