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सोमवार, 9 अगस्त 2010

मेरे प्रभु....मेरी नैया पार लगाओ।

मेरे प्रभु...
"देह दृष्ट से अखिल जगत में,
मै तेरा दास हूँ।
तूने जग में मुझे बनाया,
मैंने अपना पात्र निभाया।

जीव दृष्ट से मै तेरा,
बिखरा हुआ एक अंश हूँ ।
तूने श्रृष्टि की रचना की,
मै तेरा ही वंश हूँ।

आत्म दृष्ट से मै हूँ वही,
जो तुम हो संसार में।
तुम्ही आकर मुझे बताओ,
कौन सा मै अवतार हूँ।

अगर नहीं तुमने बतलाया,
मन का संशय नहीं मिटाया।
भटका करूँगा जन्म जन्म तक,
मै तेरे संसार में।

अब तो आकर मुझे बताओ,
मेरी नैया पार लगाओ।
अपना असली रूप दिखाओ,
मुझको भी संग लेकर जाओ।"

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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