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सोमवार, 9 अगस्त 2010

चाह रहा हूँ लिखना कुछ

चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं पाता हूँ ।
शायद मन के भावों को  , मै पहचान नहीं पाता हूँ ।

बचपन से लेकर अपनी, मै युवावस्था तक आता हूँ ।
धर्म कर्म से लेकर अपनी , कूटनीति तक जाता हूँ ।

मन के भावों को लेकिन , मै शब्द नहीं दे पाता हूँ ।
शायद मन के भाव अभी , परिपूर्ण नहीं हो पाये है ।

या फिर शायद भाव अभी, परिपक्व नहीं हो पाये है ।
जो भी हो लेकिन लिखने को, शब्द नहीं मै पाता हूँ ।

आखिर मैंने सोंचा कि, इस व्यथा को ही लिख डालूं ।
व्यथा को ही यूँ लिखकर अपनी, रचना मै रच डालूं ।


चाह रहा हूँ लिखना कुछ , पर दिशा नहीं दे पाता हूँ ।

भटक रहे मन को अपने, संयमित नहीं कर पाता हूँ ।


© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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