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रविवार, 15 अगस्त 2010

किसका होता जयघोष यहाँ ?

किसका होता जयघोष यहाँ , जिससे गुंजित है दशो दिशा ?
किसके स्वागत में फूलों से , पटी  हुयी है समस्त धारा ?
किसकी अगवानी करने को , कतार बद्ध है लोग यहाँ ?
किसकी आरती करने को , व्याकुल हैं सब लोग यहाँ ?
दशों दिशाओं कहो जरा , है कौन बीर जो वहां खड़ा ?
क्या विजयी होकर आता है , या रण-भूमि को जाता है ?

छोड़ो तुम जयघोष करो , मै स्वयं  ही देखता हूँ जाकर ।
निश्चय ही भारत मां का वो , होगा कोई बीर सपूत ।
हर लाल प्रतिज्ञाबद्ध यहाँ , माता की शान बढ़ाने को ।
अपना शीश कटाकर भी , माता की आन बचाने को ।
फिर चाहे आता होकर विजित, या जाता हो रण करने को ।
चरण-धूलि पाने को उसकी , है आतुर  आज मेरा मन भी ।






© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

  1. बढ़िया!

    स्वतंत्रता दिवस के मौके पर आप एवं आपके परिवार का हार्दिक अभिनन्दन एवं शुभकामनाएँ.

    सादर

    समीर लाल

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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पर
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अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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