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सोमवार, 16 अगस्त 2010

हर बार वही कहानी

एक अजब सी प्यास है मन में , एक अजब सी तड़फ है दिल में ।
मै व्यक्त नहीं कर पाता हूँ , ना शब्दों में लिख पाता हूँ ।
शायद मै समझ ना पाता हूँ , या स्वयं से छिपाता जाता हूँ ।
बेचैन मुझे वो करती है , अस्थिरता मुझमें भरती है ।

मेरे तन-मन में वो हर पल , आग जलाये रखती है ।
भुला जगत की मर्यादा , वो आगे बढ़ने को कहती है ।

जाने कब मुक्ति मिलेगी , मुझको इन व्याकुल भावों से ।
या जाने कब तृप्ति मिलेगी , मुझको इनकी बाँहों से ।

जो भी हो पर मेरे लिए , हर पल है अग्नि-परीक्षा ही ।
हर बार उतरना खरा मुझे , है अंतत: मेरी मजबूरी भी ।

शब्द जबाँ तक आते है , फिर ओंठ सिये क्यों रहता हूँ ?
जानबूझ कर सब कुछ मै , अंजान बना क्यों रहता हूँ ?

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

2 टिप्‍पणियां:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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