मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 27 अगस्त 2010

मन की पाती

भेज रहा हूँ तुमको प्रियवर , अपने प्रेम की पाती ।
प्रेम भाव में डूबे अक्षर , प्रेम रंग की पाती ।

पहले भी मै लिखता था , कुछ कोरे अक्षर कोरी पाती ।
तुमसे मिलकर सीख गया , अब प्रेम भाव की बाती ।

पहले भी मै मिलता था , कुछ खाली कोरे भावों से ।
लेकिन अब तो भरा हुआ हूँ , तेरे प्रेम के भावों से ।

सोँच रहा हूँ तुमने भी, शायद लिखी हो मुझको पाती ।
यदि ऐसा है निश्चय ही , होगी उसमें दिल की बाती ।

अगर नहीं लिख पायी हो, मुझे प्रेम की अपनी पाती ।
तो तुम लौटा देना मुझको , मेरे अक्षर मेरी पाती ।

मै इसे सहेज कर रख लूँगा , अपने प्रेम पिटारे में ।
तुम जब आना पास मेरे , पढ़ लेना कभी इशारे से ।

शायद तुमको भुला सकूँ , इससे कुछ दिन और अभी ।
या फिर शायद इसी तरह , मै तेरे प्रेम को पाऊँ अभी ।

जो भी हो अच्छा ही होगा, यही सोँच कर लिखता हूँ ।
लो अपने प्रेम की पाती को, अब तेरे हवाले करता हूँ।।
(मूलत: ०१/०६/२००१-को लिखा हुआ , उसके लिए जो मेरा आधा भाग है )

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

3 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर...भावपूर्ण एवं प्रवाहमयी.

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  2. अरे भाई जिनके (आधे भाग) लिए यह कविता लिखी है, घर आ गई हैं या वेट कर रहे हैं। :))

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  3. अरे भाई जिनके (आधे भाग) लिए यह कविता लिखी है, घर आ गई हैं या वेट कर रहे हैं। :))

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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