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गुरुवार, 26 अगस्त 2010

जीवन बस एक मस्ती है...

डगमगा गए कदमों को,
सम्भाल लेना जिंदगी है ।
टूटती सांसों को फिर,
जोड़ लेना जिंदगी है ।
जिंदगी जिन्दादिली है,
इसे आंसुवो में ना डुबोना ।
हो बुरा चाहे वक्त कितना,
आस को थामे तुम रखना ।

वो इन्सान क्या जिसके कदम,
बंहके नहीं दीवानगी में ।
गलतियाँ उससे ना हो,
भटके नहीं आवारगी में ।
होश जो खोये नहीं,
रूप की मदहोसियों में ।
जाम लबों तक जाकर,
छलकाए ना बेहोशियों में ।

हर वक्त नहीं सिथिर रहता,
हालात बदलते रहते हैं ।
हर एक कदम जो उठते हैं,
दूरी वो घटाते रहते हैं ।
जो बिगड़ गया उस पर रोना,
है नहीं उचित इंसानों को ।
थक कर मंजिल से पीछे हटाना,
है उचित नहीं मस्तानों को ।

© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG

4 टिप्‍पणियां:

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  2. मेरा कहना है : हर वक्त नहीं सिथिर रहता ..... हालात बदलते रहते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  3. आपने सही कहा दीपक बाबा

    आपके अनुसार पोस्ट संशोधित कर दी... पुन: स्वागत ही आपका ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खूब विवेक भाई!

    ज़िंदगी रहती नहीं सदा एक सी,
    रहना हर मंजर के लिए तैयार चाहिए।

    जवाब देंहटाएं

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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