मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

चिराग तले अँधेरा...।

दोस्तों

हम दीपक या चिराग जलाते है अपने आस पास के अंधकार को दूर करने के लिए और इसी लिए हम कहते है कि "जलाओ  दिये रह ना जाये अँधेरा..." 

और दूसरी तरफ कहावत है "चिराग  तले अँधेरा होता है।" जिसे आप सभी ने जरुर सुना होगा।

और ये मात्र कहावत ही नहीं है इस हकीकत को आपने अपनी आँखों से भी देखा भी होगा।
मगर क्या आपने कभी ध्यान दिया कि -
"जैसे जैसे, जिस अनुपात में दीपक का आकार बड़ा होता है और उससे निकले वाले प्रकाश और उर्जा की मात्रा बढ़ती  है वैसे वैसे उसी अनुपात में उसके तले में अन्धकार की मात्रा भी बढ़ती जाती है।"
अर्थात छोटे चिराग तले कम अँधेरा और बड़े चिराग तले ज्यादा अँधेरा दिखता है।

और "चिराग तले अँधेरा का सिद्धांत केवल दीपक पर ही नहीं लागू होता है वरन यह मानव जीवन पर भी सदैव लागू होता है। मैंने ना जाने कितने लोगों को दूसरों के बारे में कहते सुना है कि - यार इतना बड़ा व्यक्ति और ऐसी ओछी हरकत , ऐसी छोटी मानसिकता , छोटी छोटी चीजों के लिए ऐसी लिप्सा आदि आदि... और बहुत बार मै भी यही कहता हूँ कुछ तथाकथित विराट लोगों के लिए ।

और ये परखा हुवा सत्य है कि जैसे जैसे किसी व्यक्ति का पद, प्रतिष्ठा, प्रभुत्त्व बढ़ता है  अर्थात उसका बाह्य व्यक्तित्व बड़ा होता है वैसे वैसे उसके अन्दर की खामियां भी विराट स्वरुप धारण करती जाती है

इसके दो मुख्य कारण हों सकते है-

१. छोटे बाह्य व्यक्तित्त्व में पाई जाने वाली कमियों की तरफ कम ही ध्यान जाता है या हम उसे देख कर भी नजरंदाज कर देतें है। मगर जब उसी व्यक्ति का बाह्य व्यक्तित्त्व बड़ा हो जाता है तो हम सभी का और सारे समाज का ज्यादा ध्यान उस व्यक्ति की तरफ केन्द्रित होने लगता है और चाहे-अनचाहे बरबस ही उसकी कमियां हमारी नजर आँख में चुभने लगाती है। तो ये है देखने के नजरिये का नियम ...

२. कुछ गिने चुने महान लोगों को छोड़ दिया जाय तो जैसे जैसे छोटे बाह्य व्यक्तित्त्व वाले व्यक्ति की पद, प्रतिष्ठा, प्रभुत्त्व बढ़ता है अर्थात उसका बाह्य व्यक्तित्व बड़ा होता है वैसे वैसे उसके अन्दर अपने लोभ , लिप्सा , लालसा , और भूंख को जल्दी से जल्दी पूरी करने की तीब्र इच्छा उठने लगाती है और वो अन्दर से और ज्यादा कुटिल होने लगता है। तो यह है जैव विकास का नियम ...

इसलिये अगर आगे से आपको ऐसा कोई बड़े बाह्य व्यक्तित्व का तथाकथित विराट पुरुष, स्त्री या नपुंसक दिखे तो उसके कमियों के बारे में कहे जरुर मगर ज्यादा हैरान और अचम्भित ना हों क्योंकि यह प्रमाणित है कि "चिराग तले अँधेरा होता है।"

तो नमस्कार,
चलता हूँ ,  मुझे भी अपने अंतरतम के अंधकार में अपने व्यक्तित्व के अनुरूप अपने लोभ , लिप्सा आदि की पूर्ति के लिए कुछ देर खोना है।
© सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2010 विवेक मिश्र "अनंत" 3TW9SM3NGHMG


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)