दोस्तों
आपके सामने गुलजार साहेब की एक रचना प्रस्तुत है जिसे कितनी ही बार मै क्यों ना पढू मगर फिर इसे पढने की इच्छा मान में बनी ही रहती है.........
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पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने....
काले घर मे सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैने एक चिराग़ जला कर अपना रास्ता खोज लिया.
तुमने एक समन्दर हाथ मे लेकर मुझपर ठेल दिया,
मैने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी.
काल चला तुमने, और मेरी ज़ानिब देखा,
मैनें काल को तोड के लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.
मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा,
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया.
मौत की शह देकर तुमने समझा था, ...अब तो मात हुयी,
मैनें ज़िस्म का खोल उतार कर सौंप दिया और रूह बचा ली.
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी....
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खुदा (दस कहानियां) Rise and Fall
गुलजार
"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
मेरी डायरी के पन्ने....
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शनिवार, 24 जुलाई 2010
1 टिप्पणी:
स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
(हिन्दी में प्रतिक्रिया लिखने के लिए यहां क्लिक करें)
बस, कि मैं जिंदगी से डरता हूँ
जवाब देंहटाएंमौत का क्या है, एक बार मारेगी - गुलजार