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शनिवार, 24 जुलाई 2010

पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने....गुलजार साहेब की रचना

दोस्तों
आपके सामने गुलजार साहेब की एक रचना प्रस्तुत है जिसे कितनी ही बार मै क्यों ना पढू मगर फिर इसे पढने की इच्छा मान में बनी ही रहती है.........

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पूरे का पूरा आकाश घुमा कर बाज़ी देखी मैने....

काले घर मे सूरज रख के,
तुमने शायद सोचा था मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे,
मैने एक चिराग़ जला कर अपना रास्ता खोज लिया.

तुमने एक समन्दर हाथ मे लेकर मुझपर ठेल दिया,
मैने नूह की कश्ती उसके ऊपर रख दी.

काल चला तुमने, और मेरी ज़ानिब देखा,
मैनें काल को तोड के लम्हा-लम्हा जीना सीख लिया.

मेरी खुदी को तुमने चंद चमत्कारों से मारना चाहा,
मेरे एक प्यादे ने तेरा चाँद का मोहरा मार लिया.

मौत की शह देकर तुमने समझा था, ...अब तो मात हुयी,
मैनें ज़िस्म का खोल उतार कर सौंप दिया और रूह बचा ली.
पूरे का पूरा आकाश घुमा कर अब तुम देखो बाज़ी....
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खुदा (दस कहानियां) Rise and Fall
गुलजार

1 टिप्पणी:

  1. बस, कि मैं जिंदगी से डरता हूँ
    मौत का क्या है, एक बार मारेगी - गुलजार

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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