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सोमवार, 19 जुलाई 2010

झूंठा सच्चा, सच्चा झूंठा

लोग कहते हैं झूंठ के , पैर नहीं होते हैं ।

सच है, मैंने उसे घिसटते हुए देखा है ।
लोग कहते हैं  झूंठ, सच के बल पर चलता है ।
झूंठ है, मैंने उसे सच को चलाते देखा है ।
लोग कहते हैं अंत में, सच की जीत होती है ।
सच है, खरगोस को मैंने रस्ते में सोते देखा है ।

ऊपर के शब्दों में मैंने, कुछ झूंठ कहा बाकी सच है ।
ये बात जान लो फिर भी तुम, झूंठ का हिस्सा इसमें कम है ।
तुमको जैसा भाए वैसा, तुम इसको स्वीकार करो ।
सच झूंठ अलग करने में, ना व्यर्थ कोई विवाद ।
क्या कहते है जग वाले , ना अपना समय बर्बाद करो ।
बस अपने मन की सुनकर तुम , अपने मन की बात करो ।
०५/०५/२००४

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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