मेरी डायरी के पन्ने....

मंगलवार, 20 जुलाई 2010

सन्नाटा....

रात का सन्नाटा ख़ामोशी से,जब चारो तरफ पसरता है। बस्तियां सुनसान कर, जंगलों को आबाद करता है।
भेड़ बकरियों की खोज में, भेडियों का दिल मचलता है।
इनके पीछे पीछे कुछ, गीधड़ो का झुण्ड भी चलता है।
इनका पेट भले ही भर जाये, मन नहीं कभी भरता है।
इन्सान के अन्दर छुपा,शैतान नहीं कभी मरता है।

रात के सन्नाटे का, अपना ही नशा होता है।
सफेद्पोस लोगों के, काली करतूते छुपा लेता है।
जुल्म और बेईमानी की, रंगत को बढा  देता है ।
कमजोर और कायरों को, बहादुर मर्द बना देता है।
बेबस लाचार शिकारों को, दुल्हन सा सजा देता है।
मन में छिपी कुंठाओ को, भरपूर मजा देता है।

रात के सन्नाटे का, यह असर भी होता है।
भीड़ के सूरमाओ की, रोंगटे खड़ा कर देता है।
अपनी ही परछाहियो से, लोगों को डरा देता है।
स्वयं इंसाफ करने वालो को, मौका ये दिला देता है।
कभी जुल्म करने वालो की, बस्तियां जला देता है।
कभी रातो रात ये, राजाओ की सत्ता बदल देता है। (१०/०२/२००४)

1 टिप्पणी:

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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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