रात का सन्नाटा ख़ामोशी से,जब चारो तरफ पसरता है। बस्तियां सुनसान कर, जंगलों को आबाद करता है।
भेड़ बकरियों की खोज में, भेडियों का दिल मचलता है।
इनके पीछे पीछे कुछ, गीधड़ो का झुण्ड भी चलता है।
इनका पेट भले ही भर जाये, मन नहीं कभी भरता है।
इन्सान के अन्दर छुपा,शैतान नहीं कभी मरता है।
रात के सन्नाटे का, अपना ही नशा होता है।
सफेद्पोस लोगों के, काली करतूते छुपा लेता है।
जुल्म और बेईमानी की, रंगत को बढा देता है ।
कमजोर और कायरों को, बहादुर मर्द बना देता है।
बेबस लाचार शिकारों को, दुल्हन सा सजा देता है।
मन में छिपी कुंठाओ को, भरपूर मजा देता है।
रात के सन्नाटे का, यह असर भी होता है।
भीड़ के सूरमाओ की, रोंगटे खड़ा कर देता है।
अपनी ही परछाहियो से, लोगों को डरा देता है।
स्वयं इंसाफ करने वालो को, मौका ये दिला देता है।
कभी जुल्म करने वालो की, बस्तियां जला देता है।
कभी रातो रात ये, राजाओ की सत्ता बदल देता है। (१०/०२/२००४)
"चल पड़े मेरे कदम, जिंदगी की राह में, दूर है मंजिल अभी, और फासले है नापने..। जिंदगी है बादलों सी, कब किस तरफ मुड जाय वो, बनकर घटा घनघोर सी,कब कहाँ बरस जाय वो । क्या पता उस राह में, हमराह होगा कौन मेरा । ये खुदा ही जानता, या जानता जो साथ होगा ।" ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
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1 टिप्पणी:
स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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