मेरी डायरी के पन्ने....

सोमवार, 2 जून 2014

यूँ ही टाइम पास..

लो चली आज फ़िर से आंंधी चली , राहे अपनी वो खाली कराती चली । 
शाखे सूखी हो या हो हरे पेड़ों की, तोड़ कर वो पीछे गिराती चली ।
फ़ूल पत्तो के बारे मे क्या मै कहूँ  , उनकी तो हस्ती पूरी मिटाती चली।
राह मे जो भी आयेगा मिट जायेगा , तिनके तिनके को देखो उडाती चली।
घाव मेरे भी दिल पर लगाती चली, जुल्मो सितम जब वो तुम पर ढाती चली।
आंसूओ की कहाँ है उसको कदर , वो तो सागर को पोखर से मिलाने चली ।

बात करते हो क्यों तुम अभी धूप की, वो तो दिनकर की सत्ता झुकाने चली ।
कुटियों की अब मांगें हम खैरात क्या, वो तो महलो को भी खण्डहर बनाने चली।
रोंक पाओ अगर तो अभी रोंक लो , वर्ना हस्ती वो तुम्हारी मिटाने चली ।
क्यों छिपाते हो अब तुम मेरे राज को , वो सारी दुनिया को हकीकत बताने चली।
आग दिल मे लगे चाहे बस्ती जले , वो तुमको फ़िर मुझसे मिलाने चली ।
क्यों दिखाते हो तुम खौफ़ बाहुबलियों का, वो तो सूबो की पलटन हराने चली।

थी मेरे भी मन मे हसरत कहीं , आओ तिनको को आंधी से लडाने चले ।
जो उठी थी आहें कभी मेरे दिल से ,वो ही बनकर के आंधी है देखो चली ।
न्याय सबको वो सबसे दिलाने चली , नयी बस्तियो को फ़िर से बसाने चली।
ढांंप दिनकर को रैना बनाने चली , तेज भारत का सबको दिखाने चली।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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