मेरी डायरी के पन्ने....

शनिवार, 22 फ़रवरी 2014

चार दिनों की बाते...

चार दिनों की मींठी बाते , प्यार मोहब्बत रिश्ते नाते। 
और भुला देते है वो फिर , दो पल में ही सारी बाते। 
याद नहीं रह पाता उनको , अपनो का दिल से अपनापन।
याद भले रहता है उनको , कटु क्षण के कुछ तीखे पल।
उन्हें कहें हम क्या यारो , संवेदन शून्य है जो यारो। 
उनका संग साथ में होना क्या , उन्हें पाना क्या और खोना क्या। 

वो भटक रहे ज्यों कटी पतंग , कभी लटके यहाँ कभी लिपटे वहाँ। 
कभी हवा के झोंको में बह निकले , कभी गिरे यहाँ कभी उड़े वहाँ। 
तुम भी क्या दिल पर ले बैठे , गैरो की बे-गैरत को। 
तुम जियो शान से यारा , अपनो में अपनी खुद्दारी को। 
ये कोई चार दिनों की बात नहीं , ये जीवन भर की कहानी है। 
यहाँ अपना पराया कोई नहीं,  सब मतलब की दुनियादारी है। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

यादों के पुल पर अकेले..

ये सच है तुम्हारी यादों में ,
बिखर जाता हूँ कई बार। 
ये भी सच है रह रह कर ,
साथ बिताये लम्हे याद आते है बार बार।
ये भी सच है कि याद आते ही ,
खो जाता हूँ उन्ही खट्टे मीठे लम्हो में हर बार। 

मगर यह भी सच है ,
तुम भुला चुके हो अपना अतीत मेरे यार। 
और जब यादों की एक छोर टूट जाए ,
या पुल की रस्सियों की एक तरफ गाँठ खुल जाए। 
तो मुश्किल हो जाता है अकेले ,
यादों के पुल को बिना चोट खाये पार कर पाना। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

रविवार, 2 फ़रवरी 2014

कंक्रीट के जंगलो में...

कंक्रीट के जंगलो में , जीने की मारा-मारी है। 
रोज खोदना कुआँ यहाँ , प्यास अगर बुझानी है। 
क्या हक़ तेरा क्या है मेरा , बात ही करना नादानी है। 
चंडाल चौकड़ी की केवल , चलती यहाँ मनमानी है। 
यहाँ अपना पराया गड्मड है , मतलब की दुनियादारी है। 
रिश्ते नातो को समय नहीं , आभासी दुनिया से बस यारी है। 

क्या यही है जीवन जो हम जीते ,भूल गये हम कब हैं जीते ?
आँख खुली शुरू भागम-भाग , क्यों यंत्र मानव सा हम जीते ?
पैसा-पैसा केवल पैसा , है किसके लिए ये सारा पैसा ?
जिनके लिए हम चाहते पैसा , क्या उन्हें नजदीक है लाता पैसा ?
ना स्वाभिमान ना दिलो में मान , बेच दिया हम सबने सम्मान। 
गला काट जीवन की होड़ में , बस भरते हम एक दूजे के कान। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2014 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG