चाह रहा हूँ लिखना कुछ , अंत काल तक साथ रहे ।
बनकर वो इतिहास सदा , सदियो तक याद रहे।
हर एक शब्द अनमोल रहे , हर शब्दो से नव प्राण जगे।
धूसर हो चुकी व्यवस्था में , हर एक शब्द नव क्रांति बने।
हर एक शब्द जो लिखे लेखनी , वो मेरी आत्मा से निकले।
मानव मन के सभी भावो की , युगो युगो की प्यास बुझे।
बनकर वो इतिहास सदा , सदियो तक याद रहे।
हर एक शब्द अनमोल रहे , हर शब्दो से नव प्राण जगे।
धूसर हो चुकी व्यवस्था में , हर एक शब्द नव क्रांति बने।
हर एक शब्द जो लिखे लेखनी , वो मेरी आत्मा से निकले।
मानव मन के सभी भावो की , युगो युगो की प्यास बुझे।
शोषित पीड़ित मानव की , वह एक सशक्त आवाज बने।
देश काल की सीमा से हट , वह सबका अधिकार बने।
खण्ड-खण्ड कर दे वह जग में , फ़ैल रहे पाखण्डों को।
झाड़ पोंछ कर करे सुसंस्कृत , सब धर्मो के पण्डो को।
दे वह नूतन परिभाषाये , सब जीर्ण हो चुके ग्रंथो को।
छाँट अलग कर दे सारे , कुत्सित जोड़े गए छेपक को।
हर एक शब्द में प्राण रहे , हर एक शब्द में धड़कन हो।
हर एक शब्द स्वयं गीत बने , हर शब्दो में संगीत बसे।
हर एक शब्द स्वयं गोचर हो , हर शब्दो से नव राह दिखे।
हर राह में वो सहयात्री बने , हर पथ के वो अन्वेषक हो।
है यही चाह मेरे मन में अब , हे मातु सरस्वती कृपा करो।
मुझ जैसे तुच्छ विचारक पर , तुम अपने अभय हाथ धरो।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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