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बुधवार, 27 नवंबर 2013

कृपा करो...

चाह  रहा हूँ लिखना कुछ , अंत काल तक साथ रहे । 
बनकर वो इतिहास सदा , सदियो तक याद रहे। 
हर एक शब्द अनमोल रहे , हर शब्दो से नव प्राण जगे।
धूसर हो चुकी व्यवस्था में , हर एक शब्द नव क्रांति बने।
हर एक शब्द जो लिखे लेखनी , वो मेरी आत्मा से निकले। 
मानव मन के सभी भावो की , युगो युगो की प्यास बुझे। 

शोषित पीड़ित मानव की , वह एक सशक्त आवाज बने। 
देश काल  की सीमा से हट , वह सबका अधिकार बने। 
खण्ड-खण्ड कर दे वह जग में , फ़ैल रहे पाखण्डों को। 
झाड़ पोंछ कर करे सुसंस्कृत , सब धर्मो के पण्डो को। 
दे वह नूतन परिभाषाये , सब जीर्ण हो चुके ग्रंथो को। 
छाँट अलग कर दे सारे , कुत्सित जोड़े गए छेपक को। 

हर एक शब्द में प्राण रहे , हर एक शब्द में धड़कन हो। 
हर एक शब्द स्वयं गीत बने , हर शब्दो में संगीत बसे। 
हर एक शब्द स्वयं गोचर हो , हर शब्दो से नव राह दिखे। 
हर राह में वो सहयात्री बने , हर पथ के वो अन्वेषक हो। 
है यही चाह मेरे मन में अब , हे मातु सरस्वती कृपा करो। 
मुझ जैसे तुच्छ विचारक पर , तुम अपने अभय हाथ धरो। 

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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