मेरी डायरी के पन्ने....

शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

क्या फर्क पड़ता है ?

मै क्यों तुम्हे खोजूं यूँ ही अपने से हर बार ?
मै क्यों तुम्हे बताऊ अपने से अपने मन का हाल ?
मै क्यों तुमसे पूंछू घेरकर तुम्हारा हाल-चाल ?
मै क्यों करूँ तुमसे जबरन सुख-दुःख का व्यपार ?
मै क्यों करूँ तुमको याद कर के परेशान बार-बार ?
जब नही है तुम्हे फुरसत अपनेपन को निभाने का यार ?

क्या फर्क पड़ता है तुम क्या हो रिश्ते में यार ?
तुम दोस्त हो , मेरे भाई हो, या हो तुम प्यार ?
मुझ पर तुम्हारा और तुम पर मेरा कितना है अधिकार ?
या कितने सुख-दुःख हमने साझा किये है पहले हर बार ?
कहो क्या फर्क पड़ता है अब इन सब बीती बातो से यार ?
जब नही है तुम्हे चाहत अपनापन निभाने का लगातार ?

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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