क्यों जिद करते मुझसे आप, असली चेहरा दिखलाने को ।
है नहीं सामर्थ अभी तुममे , मेरा असली रूप पचाने को ।
तुम अभी कमल के आदी हो , कीचड़ में करते वास अभी ।
तुम क्या जानो क्या होता है , काँटो के मध्य गुलाब कभी ।
वो तो कमल है जो सहता है , कीचड में भी खुश रहता है ।
मत रोपो यहाँ गुलाब अभी , वो उर्वर भूमि में ही उगता है ।
है नहीं सामर्थ अभी तुममे , मेरा असली रूप पचाने को ।
तुम अभी कमल के आदी हो , कीचड़ में करते वास अभी ।
तुम क्या जानो क्या होता है , काँटो के मध्य गुलाब कभी ।
वो तो कमल है जो सहता है , कीचड में भी खुश रहता है ।
मत रोपो यहाँ गुलाब अभी , वो उर्वर भूमि में ही उगता है ।
तुम कहते हो कि रूप बदल लूँ , तुमसे मिलते वस्त्र पहन लूँ ।
क्या होगा इस आडम्बर से , जब तक अंतर्मन ना बदल लूँ ।
अंतर्मन भी अगर बदल लूँ , कहाँ से लाऊँगा बेशर्मी ।
बिन पेंदी के लोटे सा मै , कहो कहाँ से पाऊँगा बेधर्मी ।
तो फिर जो कुछ जैसा है , उसे वैसा ही अभी चलने दो ।
तुम अपनी राह चलो यारो, मुझे अपनी राह ही चलने दो ।
मत करो अभी तुम जिद मुझसे , मेरा असली रूप दिखाने को ।
जब भेद सभी का खुल जायेगा, मेरा असली चेहरा मिल जायेगा ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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