बस कर्म है अधिकार तुम्हारा , पीछे ना हटो कर्त्तव्य से ।
होकर अधीर ना रुक जाना, निष्फल होते किसी कर्म से ।
ज्यों बूँद बूँद से सागर बनता , संचित होते कर्म सभी ।
यदि आज नहीं निश्चय कल , पाओगे तुम फल सभी ।
सतत नदी की धारा से , चट्टाने टूट बिखर जाती ।
संचित हुए पुरषार्थ से , कठिन घड़ी भी कट जाती ।
कर्तव्य करो न व्यर्थ डरो , कभी कर्म नहीं खाली जाता ।
अच्छा हो या बुरा सभी , हर कर्म का फल मानव पाता ।
सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG
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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "
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