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शनिवार, 20 अप्रैल 2013

समग्रता....

खोल दो तुम द्वार सारे ,जीवन के अभी जो बंद हैं ।
राह दो तुम पवन को , साँसे अभी कुछ तंग है ।

उठने दो तुम ज्वार को , भावना के सागर में ।
तोड़ दो बंधन सभी , मन ना रहे एक गागर में ।
संसार क्या सन्यास क्या , दोनों कहाँ विपरीत है ।
अंतरतम को बदल लो , बस संसार ही सन्यास है । 

दुःख है अगर सुख भी होगा , सुख है साथ दुःख भी होगा ।
जब जन्म हुआ है जग में , तो मृत्यु भी निश्चय ही होगा ।
जब धर्म बनाया है तुमने , अधर्म भी जग में होगा ही ।
जब पुण्य बनाया है तुमने , पाप भी निश्चित होगा ही ।
बेहतर है जो जैसा है , उसको ही पूरा स्वीकार करें ।
गोता लगाकर गहरा , बस मोती का व्यापार करे । 

तुमने जब से जाना सुन्दरता , तय हो गयी तभी कुरूपता ।
जब तुमने माना नैतिकता , तय हो गयी तभी अनैतिकता ।
सत्य का मोल बताया जब , असत्य साथ ही आया तब ।
कर्मकांड जब शुरू किया , पाखण्ड भी साथ ही आया तब ।
हर सिक्के के दो पहलू हैं , किसी एक को चुनना मुश्किल है ।
बिना स्वीकार किये समग्रता , जीवन में खुशिया मुश्किल है ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

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ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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