मेरी डायरी के पन्ने....

रविवार, 26 अगस्त 2012

बस यू ही..


रे हठी इंसान क्यों , हठधर्मिता अपना रहा ।
छोड़ दे हठ को सभी , तू गलत राह पर जा रहा ।
ये अहम् है तेरा जो , तुझसे हठ करवा रहा ।
सर्वोच्चता  की ललक , मूर्खता करवा रहा ।
हठ दृष्टहीन होता सदा , पथ वो नहीं पहचानता ।
तोड़ कर सारे बन्धनों को , बस चलते रहना जानता ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

1 टिप्पणी:

स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
आपकी टिप्पणी से हमें लिखने का हौसला मिलता है।
पर
तारीफ करें ना केवल मेरी,कमियों पर भी ध्यान दें ।
अगर कहीं कोई भूल दिखे,संज्ञान में मेरी डाल दें ।
आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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