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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

सोंचने की है जरूरत..

चाहतो का एक पुल था , जो मिलाता था हमें ।
सब व्यस्तताओ के बाद भी , वो जोड़ता था हमें ।
यादो में एक दूसरे के , सदा बने रहते थे हम ।
दूर भले रहे मगर , पास बने रहते थे हम ।
फिर वक्त ने बदली जो करवट ,दूरियाँ बड़ने लगी ।
ना चाहते हुए भी देखो , नजदीकिया घटने लगी ।

चाहतो का पुल शायद , जर्जर है होने लगा ।
आपसी सौहाद्र भी , शायद कहीं घटने लगा ।
कमियां एक दूसरे की, क्यों हमें दिखने लगी ।
प्यार भरी बाते भी , दिल में कहीं चुभने लगीं ।
एक दूसरे की जरुरत , क्या ख़त्म होने लगी ।
या मनोभावों पर हमारे , धूल है ज़मने लगी ।

सोंचने की है जरूरत , बदलाव ये क्या हो रहा ।
रिश्तो की डोर में ये , उलझाव है क्यों हो रहा ।
बाते है वो कौन सी , जो बदलाव ये ला रहीं ।
ना चाहते हुए दिल में , क्यों दूरियां बढ़ा रहीं ।
गर समझ पायें इसे , टूटने से बच जाए पुल ।
रिश्तो की प्यारी डगर , जोड़े रह जाये ये पुल ।

सर्वाधिकार प्रयोक्तागण 2011 © ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡3TW9SM3NGHMG

5 टिप्‍पणियां:

  1. Badhiya likhe hain..magar wo rista ki kya jo dooriyan badhne se kam ho jaaye. Rista to dilon ka aisa bandhan hai jo door rahkar bhi paas hota hai

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  2. kagaji bato aur hakikat me antar hota hi bhai...govind
    sath hi dil aur dimag se diye gaye jabab me bhi...ha.ha.haaaa

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  3. बहुत सुंदर ।

    कहीं दूर बहुत दूर ले जाइये उन्हें
    फिर से वो यकीं दिलाइये उन्हें
    कि आपका प्यार उनका बस उन्ही का है
    फिर पुल पर से दौडकर आता पाइये उन्हें ।

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  4. परिवर्तन प्रकृति का नियम है. रिश्तों में भी परिवर्तन होता है. अच्छा लगा. बधाई.
    http://kpk-vichar.blogspot.in kabhi nazar dalen.

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  5. बहुत बढ़िया.....
    अच्छी रचना.

    सादर
    अनु

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स्वागत है आपका
मैंने अपनी सोच तो आपके सामने रख दी,आपने पढ भी ली,कृपया अपनी प्रतिक्रिया,सुझावों दें ।
आप जब तक बतायेंगे नहीं.. मैं जानूंगा कैसे कि... आप क्या सोचते हैं ?
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आभार..
ミ★विवेक मिश्र "अनंत"★彡
"अगर है हसरत मंजिल की, खोज है शौख तेरी तो, जिधर चाहो उधर जाओ, अंत में फिर मुझको पाओ। "

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